प्रणय अनगित उसकी बातों में समाया है ये संसार मेरा,निश्चल मन कि सरिता में पिघल रहा है प्रणय मेरा महक उठी है समीर शाम कि छूकर सुभग देह को उसकी थिरक रही हैं शशि की किरणेचंचल स्कंध आँचल में उसकी कुंचित केश बनकर मेघ छुपा रहे अनिक उसका असंयम विस्पंदन तरुवर का तड़प रहा समागम को उसका अंतर में अभिलाषा जागी रूप-पान करने कोअविरल अनवरत झरने सा समवेत रहे वह जीवन भर को...