Thursday, 10 May 2012

नूरे-ज़ना

      "नूरे-ज़ना" बागे-जिन्दगी में कलियाँ बिखर जाती हैंखिल्वते-रंगीं में कुछ तस्वीरें नज़र आती हैं //बेअसर है क्यों आज चाँद-तारों कि बारात ?है फैला नश्शा-ए-शादाब उसका आज कि रात //खिराम-ए-नाज़ उसका और टूटती हर नफ़स खामोश है क्यों आज शाखसारों कि लचक ? नकहत से भरी दोशीजा कली का आगाज़ छीन न ले कहीं मेरे अश्आरों कि आवाज़ //कोन सी बू उठती है तेरे पाक दामन से नूरे-ज़ना ? रोम-रोम है जो मेरा जुनूं-ओ-बहसत में सना // परीशां है आज रात और है आफत में जान क्यों मुज़्तर है सीने में उमड़ने को तूफ़ान ? खिल्वते-रंगीं : colorful salience,नश्शा-ए-शादाब : delightful addiction खिराम-ए-नाज़ : coquettish way of walking दोशीजा : virgin अश्आरों : शे'...

Pages 41234 »
Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | Best CD Rates | Downloaded from Free Website Templates