"नूरे-ज़ना"
बागे-जिन्दगी में कलियाँ बिखर जाती हैंखिल्वते-रंगीं में कुछ तस्वीरें नज़र आती हैं //बेअसर है क्यों आज चाँद-तारों कि बारात ?है फैला नश्शा-ए-शादाब उसका आज कि रात //खिराम-ए-नाज़ उसका और टूटती हर नफ़स खामोश है क्यों आज शाखसारों कि लचक ?
नकहत से भरी दोशीजा कली का आगाज़ छीन न ले कहीं मेरे अश्आरों कि आवाज़ //कोन सी बू उठती है तेरे पाक दामन से नूरे-ज़ना ?
रोम-रोम है जो मेरा जुनूं-ओ-बहसत में सना //
परीशां है आज रात और है आफत में जान
क्यों मुज़्तर है सीने में उमड़ने को तूफ़ान ?
खिल्वते-रंगीं : colorful salience,नश्शा-ए-शादाब : delightful addiction
खिराम-ए-नाज़ : coquettish way of walking
दोशीजा : virgin
अश्आरों : शे'...