ये दिल की बात उसे आज बतला दूं शायद परदे मे बेपर्दा वो मिल जाए गोया शायद !आरज़ू के कँवल हर तरफ खिल रहे हें शायद शाक-सारों से मिलेगी पनाह-ए-इश्क शायद /मैं अकेला नहीं अब जबसे एक नज़र उसने देखा
आँखों में उसकी एक रंगीं ख़ाब सजा देखा
तासुव्वुर में जब एक चाँद उस रोज़ तन्हा देखारोककर नफ़स एक दोशीजा को खिलते देखा /शीशाह-दिल टूटता है पत्थर बना कर रख लूँगा उसके लबों कि लाली को लहू बना कर रख लूँगा मरमरी अरमानो के बंधन को बचा कर रख लूँगा
कहे तो उसे चाँद कि ओट में छुपा कर रख लूँगा...