Tuesday 21 February, 2012

परिपथ

उस दिव्य आदित्य के कड़ लेकर
सोखता है वह जल कि बूंदों को
अम्बर से बनकर एक बीज
धरा के सीने में सो जाता है /
पल्वित हो, शोर मचाता निकल
पुलकित करता सबके मन को
सुमन नया फुलवारी में खिलता
रचने-गड़ने इस दुनिया को /
सागर कि अनगित लहरों से
जुड़ती जब एक है नई लहर
तूफानों से टकराने को
आती है एक घुंघराली वो नई तरंग /
कितनो से वह जुड़ जाएगा
कितनी लहरे जन्म दे जाएगा
इतिहास के पन्नो पर कभी
विदित अविदित उसकी गाथा /
चला जायेगा एक दिन
उसी आदित्य व्योम पवन में
कुछ अवशेष धरा को देकर
सागर में फिर खो जायेगा //

2 comments:

रश्मि प्रभा... said...

कितनी लहरे जन्म दे जाएगा
इतिहास के पन्नो पर कभी
विदित अविदित उसकी गाथा /waah

लोकेन्द्र सिंह said...

सुन्दर प्रस्तुति।

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