इश्क दरिया है जिसमे इतराती जवानी है निकलोगे कैसे इससे जब बेवफा पानी है
मेहनत के रंग हम भी दिखलाते यहाँ गोया मगर मौका मिलता यहाँ उनको जो खानदानी है
जाने वाले चले गए चेहरा छोड़कर कबकेजिए जायेंगे खातिर उनकी नादिर ये निशानी है
कस्बो-गाँव कि सड़को पर गाड़ियों कि रेलम-पेलधूल के गुबार हें बस, वादे-इरादे यहाँ सब बेमानी है
साथ चलते रहे ज़माने को दिखाने भर के लिए वक्त निकल गया 'शाद' अब तो एक कहानी है
नादिर : precious...