Tuesday, 13 December 2011

मासूमियत

कुछ लोग कह कए थे कि यही मिलेंगे फिर
कबसे खड़े इंतजार में वो कब दिखेंगे फिर

न कोई उम्मीद होगी तो क्या करेंगे लोग
काज़िब वादों के भरोसे कब तक रहेंगे  फिर

मेरी एक तमन्ना थी उसका चेहरा देख लेते
गोया मगर लगता नहीं तब तक जियेंगे फिर

अरसे बाद गाँव आया धुंधला-सा याद है बचपन
ऊँची अट्टालिकायों में  दिन कैसे कटेंगे फिर

हाजत-मंद हाथों का ख्याल कोन रखेगा
राहबर को नहीं फुर्सत वो क्या करेंगे फिर

लख्त-ए-जिगर के सामने एक न चली
उसकी मासूमियत देख  हम हँसेंगे फिर

काज़िब : false ,हाजत-मंद : poor/needy,
 राहबर : leader,लख्त-ए-जिगर : dear child.

8 comments:

V G 'SHAAD' said...

my first post..

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

हमने कहा था इसलिए वादा निभाएगें जरुर
तुम्हारी गलियों एक बार फ़िर आयेगें जरुर।।

संध्या शर्मा said...

मेरी एक तमन्ना थी उसका चेहरा देख लेते
गोया मगर लगता नहीं तब तक जियेंगे फिर

बड़े मासूम ख़यालात हैं... शुभकामनायें

V G 'SHAAD' said...

thanks lalitji and sandhyaji

Surendra Singh Bhamboo said...

कुछ लोग कह कए थे कि यही मिलेंगे फिर
कबसे खड़े इंतजार में वो कब दिखेंगे फिर
बहुत ही अच्छे खयालात अतीत में खो जाने को मन करता हैं
बहुत ही अच्छी पोस्ट हमेश ऐसे ही लिखते रहिये गा।
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत हैं

हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

मालीगांव

V G 'SHAAD' said...

thanks surendra singhji

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वाह! शानदार.... उम्दा ग़ज़ल...
सादर बधाई/स्वागत....

V G 'SHAAD' said...

habibji shukriya

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