Friday, 21 September 2012

गणपति सबको प्यारे सबसे न्यारे I LIKE U मैं कहता तुमको BRAIN तुम्हारा सब पर भारी HELP करना EXAM मे मुझको FACEBOOK पर PROFILE बनाकर रखना CONNECTED इस जगको PROBLEM आती जब भी भारी INSTANT HELP करते हो हमको CELLPHONE भी  लेकर जाना तुम रोज़  भेजना SMS हमको TWEETER पर TWEET तुम्हारी FOLLOW करेंगे हम सब तुमको अगले बरस फिर जल्दी आना मोदक LOVELY लगते हमको...

Wednesday, 11 July 2012

पनाह-ए-इश्क

ये दिल  की बात उसे आज  बतला दूं शायद परदे मे  बेपर्दा वो मिल  जाए गोया शायद !आरज़ू के कँवल हर तरफ खिल रहे हें शायद शाक-सारों से मिलेगी पनाह-ए-इश्क शायद /मैं अकेला नहीं अब जबसे एक नज़र उसने देखा आँखों में उसकी एक रंगीं  ख़ाब सजा  देखा तासुव्वुर में जब एक चाँद उस रोज़ तन्हा देखारोककर नफ़स एक दोशीजा को खिलते देखा /शीशाह-दिल टूटता है पत्थर बना कर रख लूँगा उसके लबों कि लाली को लहू बना कर रख लूँगा मरमरी अरमानो के बंधन को बचा कर रख लूँगा  कहे तो उसे चाँद कि ओट में छुपा कर रख लूँगा...

Wednesday, 13 June 2012

रूपोश

 रोष में खो बैठे क्यों, क्यों होश अपने ? कहाँ से पयोगे अब वो पुर जोश अपने मैं न 'मैं' की शमशीर उठाता दरमियान क्यों छूटते, और रहते खामोश अपने ? बेज़ार बेजात रख्खा अहल-ए-गरज को अब क्यों न करे हमें निकोहिश अपने  ? नाज़-ए-फौजदारी में वफ़ा कि उम्मीद ? नादान इतने कि खो रहे हो होश अपने  जू-ए-चाहत में फिर जब उतरना ही था क्यों रख रहे हो दिल को रूपोश अपने ? पुर जोश: zeal-fullness शमशीर: sword, अहल-ए-गरज: needy people. निकोहिश: blame, रूपोश : hid...

Thursday, 10 May 2012

नूरे-ज़ना

      "नूरे-ज़ना" बागे-जिन्दगी में कलियाँ बिखर जाती हैंखिल्वते-रंगीं में कुछ तस्वीरें नज़र आती हैं //बेअसर है क्यों आज चाँद-तारों कि बारात ?है फैला नश्शा-ए-शादाब उसका आज कि रात //खिराम-ए-नाज़ उसका और टूटती हर नफ़स खामोश है क्यों आज शाखसारों कि लचक ? नकहत से भरी दोशीजा कली का आगाज़ छीन न ले कहीं मेरे अश्आरों कि आवाज़ //कोन सी बू उठती है तेरे पाक दामन से नूरे-ज़ना ? रोम-रोम है जो मेरा जुनूं-ओ-बहसत में सना // परीशां है आज रात और है आफत में जान क्यों मुज़्तर है सीने में उमड़ने को तूफ़ान ? खिल्वते-रंगीं : colorful salience,नश्शा-ए-शादाब : delightful addiction खिराम-ए-नाज़ : coquettish way of walking दोशीजा : virgin अश्आरों : शे'...

Thursday, 1 March 2012

प्रणय

प्रणय अनगित उसकी बातों में समाया है ये संसार मेरा,निश्चल मन कि सरिता में पिघल रहा है प्रणय मेरा महक उठी है समीर शाम कि छूकर सुभग देह को उसकी थिरक रही हैं शशि की किरणेचंचल स्कंध आँचल में उसकी कुंचित केश बनकर मेघ छुपा रहे अनिक उसका असंयम विस्पंदन तरुवर का तड़प रहा समागम को उसका अंतर में अभिलाषा जागी रूप-पान करने कोअविरल अनवरत झरने सा समवेत रहे वह जीवन भर को...

Tuesday, 21 February 2012

परिपथ

उस दिव्य आदित्य के कड़ लेकरसोखता है वह जल कि बूंदों को अम्बर से बनकर एक बीज धरा के सीने में सो जाता है /पल्वित हो, शोर मचाता निकल पुलकित करता सबके मन कोसुमन नया फुलवारी में खिलता रचने-गड़ने इस दुनिया को /सागर कि अनगित लहरों से जुड़ती जब एक है नई लहर तूफानों से टकराने को आती है एक घुंघराली वो नई तरंग /कितनो से वह जुड़ जाएगा कितनी लहरे जन्म दे जाएगा इतिहास के पन्नो पर कभी विदित अविदित उसकी गाथा /चला जायेगा एक दिन उसी आदित्य व्योम पवन मेंकुछ अवशेष धरा को देकर सागर में फिर खो जायेगा...

Tuesday, 7 February 2012

ख़त

सुनहरे कागज मै लिपटा हुआ सुबह एक ख़त मिला मुझको बीते हुए लम्हों के करीब बहुत करीब ले गया वह मुझको ख़त मै लिखा था- "तुम यादों का सफ़ीना साहिल पर छोड़ आये मेरी सूनी रातों मे एक चाँद छोड़ आये इन आँखों मे दो आंसू छोड़ आये आँगन मे कुछ शबनम की बूंदे छोड़ आये अंजान राहों मे जीने की वजह छोड़ आये मेरे दिल के परदे पर अपनी शबीह छोड़ आये " उस ख़त मे न कोई नाम न पता लिखा उसका दिल की गहराइयों मे बसा था हर पहलू उसका सुबह से कई बार पड़ चूका हूँ ये ख़त उसका अब शाम होने से पहले ढूड़ना होगा पता उसका // सफ़ीना: boat, शबीह : photograph, शबनम: d...

Wednesday, 25 January 2012

निशानी

इश्क दरिया है जिसमे इतराती जवानी है निकलोगे कैसे इससे जब बेवफा पानी है   मेहनत के रंग हम भी दिखलाते यहाँ गोया मगर मौका मिलता यहाँ उनको जो खानदानी है जाने वाले चले गए चेहरा छोड़कर कबकेजिए जायेंगे खातिर उनकी नादिर ये निशानी  है कस्बो-गाँव कि सड़को पर गाड़ियों कि रेलम-पेलधूल के गुबार हें बस, वादे-इरादे यहाँ सब बेमानी है   साथ चलते रहे ज़माने को दिखाने भर के लिए वक्त निकल गया 'शाद' अब तो एक कहानी है नादिर : precious...

Friday, 20 January 2012

यारो

जज्बा-ए-दिल का हाल मत पूछो यारो एक बार उतरकर देखो मत सोचो यारो रात घिर आएगी तो कहाँ जाऊंगा फिर कोई पनाह-गाह हमारे लिए तो ढूड़ो यारो सर-ज़मीं पर मचा है तबाही का आलम चादर फेंककर अब तो तुम जागो यारो मुफलिस मुहताज आये ज़माने में गोया ग़म कुछ नहीं एक बार खुलकर नाचो यारो वो नहीं मिल सका जिसे चाहा गोया मगर रोज़ाह-ए-दिल अब तुम तोड़ो यारो मिलोगे तो छेडूगा वही पुराना तराना  'शाद' को तुम अब तो मत मारो यारो जज्बा-ए-दिल : दिल की भावनायें रोज़ाह-ए-दिल : दिल का उपवास, 'शाद' : ख़ुशी                        ...............'शाद'...

Monday, 16 January 2012

'मोहब्बत'

'मोहब्बत' हयात का है एक सफ़हाजोबन कि एक ऊँची परवाज़ है  है इख़लास इरादत अरदास परवर दिगार की साज़ है वह रूह का इल्मे इलाही कि किताब है  कभी अदक सी अज़ाबतो फिर गरल का घूँट भी है कभी फ़रेब मे लिपटी हुई  इंद्रजाल  अध्यास है नदी के दो किनारे तो कभीसागर से मिलती धार है सहिबा का गुरूर तो कभीमाशूक का एकराम है  माना कि कठिन डगर है पर सितारों से भरी रात है पा गए तो 'बारिश-ए-हयात'नहीं मिली तो 'रियाज़त-ए-हयात' // सफ़हा : पृष्ट ,परवाज़ : उड़ान , इख़लास : निस्वार्थ ,अरदास : प्रार्थना,इल्मे इलाही :आधत्म्य, अदक: कठिन, अज़ाब : कष्ट , गरल: जहर, रियाज़त: तपश्या...

Tuesday, 10 January 2012

खामोश

शब्-ए-खामोश है  चाँद-सितारों के बीच लब-ए-खामोश महफ़िल-ए-हज़ारों के बीच बदलते अंदाज़ उनके यहाँ पानी-ए-जू कि तरह आतिश-ए-खामोश कब तलक पत्थरों के बीच सीने में हर हम्द के उसका चेहरा बुने जाता मानी-ए-खामोश मिले शायद इन रहगुज़रों के बीच नियत-ए-इबादत-ओ-खिदमत-ए-खुदा भी है निगाह-ए-खामोश खड़ा फिर भी कतार्रों के बीच साथ चले थे एक ही मंजिल कि और शाद-शाद बेरुखी-ए-खामोश अब है हम-सफ़ीरों के बीच शब्-ए-खामोश : silent night लब-ए-खामोश : silent lips पानी-ए-जू : flowing water of river आतिश-ए-खामोश : strong emotion that one do not able to fully express मानी-ए-खामोश : salient meaning/sense रहगुज़रों : passage नियत-ए-इबादत-ए-खुदा-ओ-खिदमत : intention of prayer of God and duties शाद-शाद : happy-happy बेरुखी-ए-खामोश : silent indifference हम-सफ़ीरों : co-inhabitant  ...

Monday, 2 January 2012

तारीख़

my new year poetry.... कोई उम्मीद कोई ख़ाब नहीं जिगर के पास खुशियाँ हैं यहाँ सब गिरवी क्यों फ़िकर के पास हर मोड़ पर कुछ रास्ते जरूर नज़र आते हैं कितना भी चलो हयात खड़ी क्यों सिफ़र के पास बेवफा नहीं वो, ये दिल ही झूठ बोलता रहता है नहीं तो जान क्यों रहती  उस आतिश-ए-तर के पास  लगा रहा आठों-पहर हुनर-मंद हांथों के साथ फिर सब पहुँच जाता क्यों उस आली-गुहर के पास नया साल हर बार कैलेण्डर बदल जाता है तारीख़-ए-'शाद' फिर क्यों नहीं नज़र के पास आतिश-ए-तर : lips of the beloved आली-गुहर : belonging to a rich family, तारीख़-ए-'शाद' : happy time...

Pages 41234 »
Twitter Delicious Facebook Digg Stumbleupon Favorites More

 
Design by Free WordPress Themes | Bloggerized by Lasantha - Premium Blogger Themes | Best CD Rates | Downloaded from Free Website Templates