Monday, 16 January 2012

'मोहब्बत'

'मोहब्बत' हयात का
है एक सफ़हा
जोबन कि एक 
ऊँची परवाज़ है 

है इख़लास इरादत 
अरदास परवर दिगार की
साज़ है वह रूह का 
इल्मे इलाही कि किताब है 

कभी अदक सी अज़ाब
तो फिर गरल का घूँट भी है 
कभी फ़रेब मे लिपटी हुई
 इंद्रजाल  अध्यास है

नदी के दो किनारे तो कभी
सागर से मिलती धार है 
सहिबा का गुरूर तो कभी
माशूक का एकराम है 

माना कि कठिन डगर है 
पर सितारों से भरी रात है 
पा गए तो 'बारिश-ए-हयात'
नहीं मिली तो 'रियाज़त-ए-हयात' //

सफ़हा : पृष्ट ,परवाज़ : उड़ान ,
इख़लास : निस्वार्थ ,अरदास : प्रार्थना,
इल्मे इलाही :आधत्म्य, अदक: कठिन,
अज़ाब : कष्ट , गरल: जहर, रियाज़त: तपश्या

4 comments:

amit kumar srivastava said...

vaah vaah ...

laajavaab..

V G 'SHAAD' said...

thanks amitji

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सफ़हे आज खुल गए यूं कहानी के
ज्यूं रेले बह गए जीस्त-ए-फ़ानी के

V G 'SHAAD' said...

thanks lalitji

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