'मोहब्बत' हयात का
नदी के दो किनारे तो कभी
अज़ाब : कष्ट , गरल: जहर, रियाज़त: तपश्या
है एक सफ़हा
जोबन कि एक
ऊँची परवाज़ है
है इख़लास इरादत
अरदास परवर दिगार की
साज़ है वह रूह का
इल्मे इलाही कि किताब है
कभी अदक सी अज़ाब
तो फिर गरल का घूँट भी है
कभी फ़रेब मे लिपटी हुई
इंद्रजाल अध्यास है
इंद्रजाल अध्यास है
नदी के दो किनारे तो कभी
सागर से मिलती धार है
सहिबा का गुरूर तो कभी
माशूक का एकराम है
माना कि कठिन डगर है
पर सितारों से भरी रात है
पा गए तो 'बारिश-ए-हयात'
नहीं मिली तो 'रियाज़त-ए-हयात' //
सफ़हा : पृष्ट ,परवाज़ : उड़ान ,
इख़लास : निस्वार्थ ,अरदास : प्रार्थना,
इल्मे इलाही :आधत्म्य, अदक: कठिन,सफ़हा : पृष्ट ,परवाज़ : उड़ान ,
इख़लास : निस्वार्थ ,अरदास : प्रार्थना,
अज़ाब : कष्ट , गरल: जहर, रियाज़त: तपश्या
4 comments:
vaah vaah ...
laajavaab..
thanks amitji
सफ़हे आज खुल गए यूं कहानी के
ज्यूं रेले बह गए जीस्त-ए-फ़ानी के
thanks lalitji
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