Wednesday, 25 January 2012

निशानी

इश्क दरिया है जिसमे इतराती जवानी है
निकलोगे कैसे इससे जब बेवफा पानी है  

मेहनत के रंग हम भी दिखलाते यहाँ गोया
मगर मौका मिलता यहाँ उनको जो खानदानी है

जाने वाले चले गए चेहरा छोड़कर कबके
जिए जायेंगे खातिर उनकी नादिर ये निशानी  है

कस्बो-गाँव कि सड़को पर गाड़ियों कि रेलम-पेल
धूल के गुबार हें बस, वादे-इरादे यहाँ सब बेमानी है  

साथ चलते रहे ज़माने को दिखाने भर के लिए
वक्त निकल गया 'शाद' अब तो एक कहानी है

नादिर : precious

5 comments:

रश्मि प्रभा... said...

मेहनत के रंग हम भी दिखलाते यहाँ गोया
मगर मौका मिलता यहाँ उनको जो खानदानी है
bahut khoob

V G 'SHAAD' said...

thanks rasmiji

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया अशआर हैं।

आभार

V G 'SHAAD' said...

thanks lalitji

dr.mahendrag said...

.धूल के गुबार हें बस, वादे-इरादे यहाँ सब बेमानी है

उत्कृष्ट रचना.
वादों पर विश्वास बेमानी सनातन है,वादे कब कौन पूरे करता है.

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