इश्क दरिया है जिसमे इतराती जवानी है
निकलोगे कैसे इससे जब बेवफा पानी है
मेहनत के रंग हम भी दिखलाते यहाँ गोया
मगर मौका मिलता यहाँ उनको जो खानदानी है
जाने वाले चले गए चेहरा छोड़कर कबके
जिए जायेंगे खातिर उनकी नादिर ये निशानी है
कस्बो-गाँव कि सड़को पर गाड़ियों कि रेलम-पेल
धूल के गुबार हें बस, वादे-इरादे यहाँ सब बेमानी है
साथ चलते रहे ज़माने को दिखाने भर के लिए
वक्त निकल गया 'शाद' अब तो एक कहानी है
नादिर : precious
5 comments:
मेहनत के रंग हम भी दिखलाते यहाँ गोया
मगर मौका मिलता यहाँ उनको जो खानदानी है
bahut khoob
thanks rasmiji
बहुत बढिया अशआर हैं।
आभार
thanks lalitji
.धूल के गुबार हें बस, वादे-इरादे यहाँ सब बेमानी है
उत्कृष्ट रचना.
वादों पर विश्वास बेमानी सनातन है,वादे कब कौन पूरे करता है.
Post a Comment